ये हैं भारत के 10 महान आविष्कार, जिन पर हर भारतीय को गर्व है

विश्व को दिया जीरो - गणित का आधार जीरो यानी शून्य होता है और इसकी खोज भारत में हुई थी। गणितज्ञ आर्यभट्ट पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने जीरो के लिए कोई संकेत, कोई सिंबल '0' दिया था। जिसके बाद गणितीय क्रिया विधियों जैसे जोड़ने और घटाने में शून्य का प्रयोग शुरू हो सका। 

दशमलव प्रणाली - भारत ने विश्व को दशमलव प्रणाली भी दी। इस प्रणाली में, प्रत्येक प्रतीक की एक स्थिति और एक निरपेक्ष मूल्य होता है। इसकी खोज भी आर्यभट्ट ने की। इसे एक (इकाई), दस (दहाई), शत (सैकड़ा), सहस्त्र (हजार) इत्यादि संख्याओं को मापने के उपयोग में लाया जाने लगा। 

1 से 9 तक अंक सूचनाएं - गणित के दुनिया में एक और बड़ी खोज भी भारत ने ही की। भारतीयों ने करीब 500 ईसा पूर्व 1 से लेकर 9 तक हर अंक के लिए अलग-अलग प्रतीक खोजे, जिसे बाद में अरब लोगों ने अपनाया और इसे 'हिंद' अंक नाम दिया।

बाइनरी संख्याएं - आज की कंप्यूटर टेक्‍नोलॉजी बाइनरी संख्याओं पर निर्भर है। इसमें कंप्यूटर प्रोग्राम लिखे जाते हैं। बाइनरी में दो अंक होते हैं, 1 और 0, जिनके संयोजनों को बिट और बाइट (Bits and Bytes) कहते हैं। बाइनरी व्यवस्था का पहला उल्लेख वैदिक विद्वान पिंगल की किताब चंद्रशास्त्र में मिलता है। आज के समय में यही कंप्यूटर की भाषा है।

परमाणु की अवधारणा - प्राचीन भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक कणाद ने पहले ही परमाणु थ्योरी बना ली थी। उन्होंने एक परमाणु की तरह, अणु या छोटे अविनाशी कणों के अस्तित्व का अनुमान लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि अणु में दो अवस्थाएं हो सकती हैं- पूर्ण विश्राम की अवस्था और एक गति की अवस्था।

हेलियोसेंट्रिक थ्योरी - महान खोजकर्ता आर्यभट्ट की किताब आर्यभटीय उस वक्त खगोलीय ज्ञान के बारे में एक स्रोत की तरह काम किया। उन्होंने कहा था कि धरती गोल है, अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य का चक्कर लगाती है। इसे ही हेलियोसेंट्रिक थ्योरी कहा जाता है।

जिंक को गलाना - भारत ही पहला देश था जिसने आसवन विधि से विश्‍व को जिंक को गलाना सिखाया। यह एक उन्नत तकनीक थी जो प्राचीन रसायन विज्ञान के लंबे अनुभव से विकसित की गई थी। राजस्थान की तिरि घाटी में स्थित जावर दुनिया का पहला ज्ञात प्राचीन जिंक स्मेल्टिंग स्थल है।

प्लास्टिक सर्जरी - भारत में 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखी गई 'सुश्रित संहिता' को प्राचीन सर्जरी में सबसे ज्यादा स्पष्ट पुस्तक माना जाता है। इसमें प्लास्टिक सर्जरी की जटिल क्रियाओं का वर्णन भी किया गया है। नाक की सर्जरी, जिसे राइनोप्लास्टी कहते हैं, प्लास्टिक सर्जरी में सुश्रुत संहिता का जाना-माना योगदान है।

आयुर्वेद - भारतीय चिकित्सा के जनक कहे जाने वाले चरक पहले ऐसे चिकित्सक थे जिन्होंने अपनी पुस्तक में पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा की संकल्पना प्रस्तुत की थी। यह पुस्तक आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान पर आधारित थी। 

लोहे के रॉकेट - आज के युद्ध में जो रॉकेट विध्‍वंस बनाते हैं। उसकी रूपरेखा सबसे पहले 1780 के दशक में मैसूर के टीपू सुल्तान ने विकसित किया था। टीपू सुल्तान ने एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान इन रॉकेटों का उपयोग ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सफलतापूर्वक किया गया था। 

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