क्या होते हैं Electoral Bonds? जिन्हें लेकर हो रही इतनी चर्चा 

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था. 

सरकार का कहना था कि चुनावी चंदे में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए इस स्कीम को लाया गया है. 

एसबीआई की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाते थे. ये रकम एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकती थी. 

इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिले हों. 

इन बॉन्ड को कोई भी खरीदकर अपनी मनपसंद पार्टी को दे सकता था, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता हो और जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हों. 

इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता था. इलेक्टोरल बॉन्ड को साल में चार बार- जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किया जाता था. 

साल में चार बार 10-10 दिन के लिए इन बॉन्ड को जारी किया जाता था. कोई भी व्यक्ति या कॉर्पोरेट हाउस इन बॉन्ड को खरीद सकता था. 

बॉन्ड मिलने के बाद 15 दिन के भीतर राजनीतिक पार्टी को इन्हें अपने खातों में जमा कराना होता था. कानूनन, राजनीतिक पार्टियां ये बताने के लिए बाध्य नहीं थी. 

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