चंद्रयान-3: चांद के बारे में जान लें ये खास बातें 

गोल नहीं है चंद्रमा 

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा बिलकुल गोल नज़र आता है. लेकिन असल में एक उपग्रह के रूप में चंद्रमा किसी गेंद की तरह गोल नहीं है. 

कभी पूरा नहीं दिखता चंद्रमा 

अगर आप कभी भी चांद देखते हैं तो आप उसका अधिकतम 59 फीसद हिस्सा देख पाते हैं. चांद का 41 फीसद हिस्सा धरती से नज़र नहीं आता. 

ज्वालामुखी विस्फोट का 'ब्लू मून' से कनेक्शन 

माना जाता है कि चंद्रमा से जुड़ा 'ब्लू मून' शब्द साल 1883 में इंडोनेशियाई द्वीप क्राकातोआ में हुए ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से इस्तेमाल में आया. 

चांद पर सीक्रेट प्रोजेक्ट 

एक दौर ऐसा था जब अमेरिका चांद पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार कर रहा था. 

चांद पर कैसे बने गहरे गड्ढे 

चीन में एक प्राचीन धारणा है कि ड्रैगन के सूर्य को निगलने की वजह से सूर्य ग्रहण होता है. इसकी प्रतिक्रिया में चीनी लोग जितना संभव हो, उतना शोर मचाते थे. 

पृथ्वी की रफ़्तार धीमी कर रहा है चंद्रमा 

जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे क़रीब होता है तो इसे पेरिग्री कहते हैं. इस दौरान ज्वार-भाटा का स्तर सामान्य से काफ़ी बढ़ जाता है. 

चंद्रमा की रोशनी 

पूर्णिमा के चांद की तुलना में सूरज 14 गुना अधिक चमकीला होता है. पूरनमासी के एक चांद से आप अगर सूरज के बराबर की रोशनी चाहेंगे तो आपको 398,110 चंद्रमाओं की ज़रूरत पड़ेगी. 

लियानोर्डा डा विंसी ने पता लगाया था 

कभी कभी चांद एक छल्ले की तरह लगने लगता है. इसे हम अर्धचंद्र या फिर बालचंद्र भी कहते हैं. 

चांद के क्रेटर का नाम कौन तय करता है 

चंद्रमा के क्रेटर्स (विस्फोट से बने गड्ढे) के नाम जानेमाने वैज्ञानिकों, कलाकारों या अन्वेषकों (एक्सप्लोरर्स) के नाम पर रखे जाते हैं. 

चांद का रहस्यमयी दक्षिणी ध्रुव 

चांद का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र जहां चंद्रयान-3 पहुंचने की कोशिश कर रहा है, उसे बेहद रहस्यमयी माना जाता है. 

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