चले... सफलता की ओर प्रेमसे, आनंदसे by सुरेश मुरलीधर वाघ
Book Summary:
“पाठ अर्थात् सीख, सबक या संदेश | इनमेंसे कुछ पाठ' आत्मनिष्ठ होते हैं। अर्थात् प्रामाणिक रूप में स्वयंको भीतरसे टटोलनेवाले | अपने पूर्ण जीवनकी गलतियाँ स्वीकारकर आधुनिक प्रगतशील विचारधारा को स्वीकारकर इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजीके तंत्रप्रणालीसे जुड़कर आजकी वस्तुनिष्ठ जीवनप्रणाली को अपनी आत्मनिष्ठ विचारधारा के साथ जोड़कर चलनेवाले ग्राम जानोरी, नाशिकस्थित श्री. सुरेश मुरलीधर वाघ का मेरा पहला अर्थात् प्राथमिक परिचय मेरे घरपर हुआ | इस हट्टेकट्टे शरीर और विचारके युवाकों दुसरे एक युवा श्री. महेश सोनवणे, (नाशिक) नें मेरे घर भेजा था।
इस नवयुवाने मराठीमें 'चला यशाकडे प्रेमाने, आनंदाने' किताव लिखी है, जिसके टंकलेखनकी और अक्षरमुद्रणकी जिम्मेदारी श्री. महेश सोनवणेके कंधेपर सौंपी है। और उस दिशामें सुचारू ढंगसे काम चल रहा हैं | इस किताब के हिंदी अनुवादकी जिम्मेदारी श्री. सुरेश मुरलीधर वाघने मेरे कंधेपर सौंप दीं और प्रेम, आनंदसे वैश्विक दिशाकी ओर बढ़नेमें सफलता चाहनेवाले इस युवा की पुस्तक का हिंदी में अनुवाद- 'चले सफलताकी ओर ग्रेमसे, आनंदसे' शीर्षकसे करनेकी जिम्मेदारी मैंने सहर्ष स्वीकारी।
मुझे कहते हुए गर्व का अनुभव हो रहा है, कि घोर निराशा, घोर आपदा (विपदा) , संकटों को झेलते हुए भी यह युवा लेखनकार्य में दृढ़ संकल्प है और प्रकाशनमें निश्चचही सफल होगा। सुधीजन, विचारक कहलानेवाले प्राध्यापकगण तथा लेखकोंद्वारा अनुवादके लिये नकारे गये इस युवा को थैर्य देकर मैंने इस कार्यको पुरा किया है और उसे सौंप रहा हूँ।
Audience of the Book :
This book Useful for Leisure Read.